आजादी दिवस मनाएं
कीर्ति श्रीवास्तव
सम्पादक
आजादी एक ऐसा शब्द है जो जिसके भी कानों में पड़ता है वो खुद को पिजड़े से बाहर निकला मानने लगता है। तो फिर ऐसा क्यों है कि हम आज भी आजादी को ढूंढ रहे हैं। शायद... शायद नहीं यकीनन रोज अखबारों के वो समाचार जो हमें अंदर तक झकझोर देते हैं। वही इस गुम हुई आजादी को ढूंढने का सबब है।
दुष्कर्म, शोषण, अत्याचार, आधुनिकता, वैमनस्य, भेदभाव, गरीबी,अशिक्षा, बेरोजगारी, बिना जाने भीड़ जमा कर किसी को भी मारना और भी न जाने कितने अपराध आज भी पूर्ण रूप से अपना अधिकार जमाये हुए हैं। वैसे देखें तो आजाद भारत ने कई बड़ी उपलब्धियां भी पाई हैं। हाल ही में हुआ चंद्रयान-2 का सफल प्रक्षेपण। इसका उदाहरण है फिर भी क्यों आजादी से कोसों दूर खड़े हैं हम?
स्वतंत्रता दिवस के आने के पूर्व देश आजादी के जश्न की तैयारियों में डूब जाता है और स्वतंत्रता दिवस की शाम तक आजादी के महत्व को, उसके मतलब को भूल भी जाते हैं।
जब हमारे देश पर जान न्यौछावर करने वाले शहीदों ने आजादी के लिए संघर्ष किया तो उनका एक मात्र उद्देश्य था भारत को अंग्रेजों से आजाद कराना लेकिन आज देश हित नहीं स्वयं हित और स्वार्थ को अपने दिल-दिमाग में बसा लिया है। सोने की चिडिय़ा एवं आदर्श भारत का सपना सिर्फ किताबों में पढऩे को ही रह गया है। कल शायद वो पन्ने भी न रहें।
रोज हो रहे दुष्कर्म, किसानों द्वारा आत्महत्या, चोरी, सोशल मिडिया द्वारा अपराध, ए.टी.एम. में चोरी और भी बहुत कुछ। ये सब आजाद भारत पर प्रश्नों की बौछार कर देते हैं। समूचे देश में महिलाएँ आज भी सामाजिक असमानता, प्रताडऩा झेल रहीं हैं। आज भी बाल मजदूरी, बाल विवाह को रोकने में हम अपने को लाचार पाते हैं। भ्रष्टाचार, कालाबाजारी की काली घटा छंटने का नाम ही नहीं ले रही।
ऐसा नहीं है कि देश में बदलाव नहीं हो रहा या हम बदलाव नहीं चाहते पर बदलाव का प्रतिशत कम और अपराध का प्रतिशत कहीं ज्यादा है। देश को बदलने का ज़ज्बा आज भी कायम है। देश बदलाव की ओर अग्रसर भी है पर ये बदलाव कब तक अपनी रफ्तार पकड़ेगा यह कहना तो बहुत मुश्किल है।
वैसे आज की युवा पीढ़ी आधुनिकता और पाश्चात्य सभ्यता को ही बदलाव का अंत मानकर बैठ गई है। छोटे और कम कपड़े, फटी जीन्स, पब पार्टी, पब्जी जैसे विडियो गेम जिसने बच्चों को सही-गलत के सोचने की शक्ति ही छीन ली है। यही उनकी दुनिया है। पर ये दुनिया काली है। ये समझने में कहीं देर न हो जाए।
कहीं देर न हो जाए.... जरूरत है सही मार्ग दर्शन की। जिसके लिए अति व्यस्त माता-पिता को अपने बच्चों को समय देना होगा। किटी पार्टी से दूरी बनानी होगी। कल यही बच्चे जब आपको None of your business बोलेंगे और आपको छोड़ कर चले जाएंगे या आपको घर से बाहर निकाल देंगे तब शायद आपको अपनी गलती सुधारने के लिए समय भी नहीं मिल पाएगा। तब आपको अपने माता-पिता की यही बात याद आएगी कि 'अब पछताए होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत्य।
हम सिर्फ सोचेें की बदलाव लाना है और बदलाव हो जाए ऐसा मुमकिन नहीं। इसके लिए एक साथ आगे बढऩा होगा। सूरज की तपिश में खुद को जलाना होगा न कि सूरज के उजाले का इन्तजार करना। चाँद की रोशनी में सूरज सी चमक को लाना होगा। एक नयी शुरूआत करनी होगी।
'आओ, हम आजादी दिवस मनाएँ/शूरवीरों की याद में/अपने देश को सजाएँ/आओ हम आजादी दिवस मनाएँ।
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